मंगला गौरी व्रत कथा | Mangla Gauri Vrat Katha

Mangla Gauri Vrat Katha

Mangla Gauri Vrat Katha

बहुत समय पहले, एक नगर में धरमपाल नामक व्यवसायी रहते थे। उनकी पत्नी अत्यंत सुंदर थी, और उनके पास बड़ी संपत्ति भी थी। हालांकि, उनके पास बच्चे नहीं थे, इसलिए वे दोनों काफी दुःखी थे।

भगवान की दया से उन्हें एक पुत्र का वरदान मिला, लेकिन वह पुत्र अल्पायु था। उनका जीवन 16 वर्ष की आयु में ही सांप के काटने के कारण समाप्त हो जाने का श्राप था। किंतु उनकी शादी उसके 16 वर्ष की आयु से पहले ही एक युवती से हुई, जिसकी मां ने मंगला गौरी व्रत का पालन किया था।

इसके परिणामस्वरूप, उस युवती के जीवन में ऐसा अनुकूलता आई कि वह कभी भी विधवा नहीं हो सकती थी। इसके बदले, धरमपाल के पुत्र को शताब्दी जीवन की प्राप्ति हुई।

इस घटना के बाद, सभी नवविवाहित महिलाएं इस मंगला गौरी व्रत का पालन करने लगती हैं, ताकि उनके वैवाहिक जीवन में स्थिरता और सुख बना रहे। जो महिलाएं इस व्रत का पालन नहीं कर पातीं, उन्हें कम से कम मंगला गौरी पूजा तो अवश्य करनी चाहिए।

पूजा के बाद, विवाहित महिला अपनी सास और ननद को 16 लड्डू प्रसाद के रूप में देती है। फिर, ब्राह्मण को भी यही प्रसाद दिया जाता है। इसके बाद, 16 बाती वाले दीपक से देवी मंगला गौरी की आरती की जाती है।

व्रत के अगले दिन, बुधवार को, माँ मंगला गौरी की मूर्ति को नदी या तालाब में विसर्जित किया जाता है। आखिरकार, सभी भक्त भगवान से अपने किए गए अपराध और पूजा में बनी त्रुटियों के लिए क्षमा मांगते हैं। यह व्रत और पूजा के अनुष्ठान को 5 वर्षों तक निरंतर रूप में किया जाता है, जिससे परिवार में खुशियों का वास बना रहता है।

अतः, इस मंगला गौरी व्रत को ध्यानपूर्वक और नियमित रूप से करने से हर व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में सुखमय वृद्धि होती है। इस व्रत की महत्वपूर्णता को समझते हुए, पुत्र और पोते का जीवन भी अनुकूल और सुखमय रहता है।

आरती: जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
निशदिन तुमको ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी।
मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दो नैना, चंद्रबदन नीको।।
जय अम्बे गौरी।

कथा यहाँ समाप्त होती है। जय मंगला गौरी!

Leave a Comment